Brinjal Cultivation: बैंगन की खेती में अच्छी वानस्पतिक वृद्धि के बावजूद फूल न आना एक आम समस्या है, जो किसानों की उत्पादकता और आय को प्रभावित कर सकती है. इस समस्या के पीछे कई कारण हो सकते हैं, जैसे पोषक तत्वों की कमी, जलवायु परिस्थितियां, रोग और कीट प्रबंधन में चूक, और खेती के गलत तरीकों का पालन. इस लेख में हम इस समस्या के संभावित कारणों और उनके प्रबंधन के उपायों पर चर्चा करेंगे.
बैंगन में फूल न आने के संभावित कारण
1. अत्यधिक नाइट्रोजन का उपयोग
पौधों की वानस्पतिक वृद्धि के लिए नाइट्रोजन आवश्यक है, लेकिन इसकी अधिकता से पौधों में पत्तियों और तनों का विकास तो होता है, लेकिन फूल बनने की प्रक्रिया बाधित हो जाती है.
2. फॉस्फोरस, पोटाश एवं सुक्ष्म पोषक तत्वों की कमी
फूलों और फलों के विकास के लिए फॉस्फोरस और पोटाश जैसे पोषक तत्व आवश्यक हैं. इनकी कमी से पौधे में फूल बनने की प्रक्रिया धीमी हो सकती है. बोरॉन एवं जिंक भी फूल बनने की प्रक्रिया के महत्वपूर्ण हिस्सा है.
3. असंतुलित सिंचाई
जल का अत्यधिक या अपर्याप्त उपयोग पौधों की वृद्धि और विकास को प्रभावित करता है. अधिक जलभराव से जड़ें सड़ सकती हैं और पौधों की ऊर्जा फूल बनने में खर्च होने के बजाय वृद्धि में लग जाती है.
4. जलवायु परिस्थितियां
बैंगन का पौधा मध्यम तापमान पर बेहतर वृद्धि करता है. अत्यधिक गर्मी या ठंड से फूल बनने की प्रक्रिया पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है.
5. रोग और कीट
बैंगन में रोग जैसे वर्टिसिलियम विल्ट या कीट जैसे सफेद मक्खी और थ्रिप्स फूल बनने की प्रक्रिया को बाधित कर सकते हैं.
6. पौधों की अत्यधिक घनत्व वाली रोपाई
अधिक संख्या में पौधों को पास-पास रोपने से पौधों को उचित प्रकाश, हवा और पोषक तत्व नहीं मिल पाते, जिससे फूल बनने में बाधा आती है.
बैंगन में फूल आने के प्रबंधन के उपाय
1. संतुलित पोषक तत्व प्रबंधन
- नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और पोटाश का संतुलित अनुपात में उपयोग करें. नाइट्रोजन का उपयोग पौधों की प्रारंभिक अवस्था में करें और फूल बनने के समय इसे कम करें.
- नाइट्रोजन (N)120 किग्रा/हेक्टेयर, 3 किश्तों में दें, पहली किश्त रोपाई के 15 दिन बाद. दूसरी किश्त फूल आने के समय, यदि वानस्पतिक वृद्धि बहुत अच्छी हो तो नाइट्रोजन की दूसरी किस्त को रोक देना चाहिए. तीसरी किश्त फल बनने के समय देना चाहिए.
- फूल बनने की प्रक्रिया को प्रोत्साहित करने के लिए पोटाश और फॉस्फोरस युक्त उर्वरकों जैसे सिंगल सुपर फॉस्फेट (एसएसपी) और म्यूरिएट ऑफ पोटाश (एमओपी) का उपयोग करें. फॉस्फोरस एवं पोटाश दोनों 60-60 किग्रा/हेक्टेयर देना चाहिए. फॉस्फोरस एवं पोटाश दोनों की पूरी मात्रा को खेत की तैयारी के समय ही दें देना चाहिए.
- सूक्ष्म पोषक तत्वों, जैसे बोरॉन और जिंक @ 0.2 प्रतिशत का छिड़काव करें या जिंक सल्फेट 25 किग्रा/हेक्टेयर एवं बोरॉन 10 किग्रा/हेक्टेयर का प्रयोग खेत की तैयारी करते समय ही करना चाहिए. बेहतर उपयोग के लिए पोषक तत्वों का निर्धारण मिट्टी परीक्षण के अनुसार करना चाहिए. बोरॉन फूल बनने और परागण में सहायक होता है.
2. सिंचाई का प्रबंधन
पौधों की आवश्यकतानुसार सिंचाई करें. जलभराव से बचने के लिए खेत में उचित जल निकासी की व्यवस्था करें.टपक सिंचाई प्रणाली का उपयोग करके जल की बर्बादी को रोकें और पौधों को सही मात्रा में पानी दें.
3. उचित तापमान और जलवायु प्रबंधन
अत्यधिक गर्मी से बचाने के लिए छायादार जाल या मल्चिंग का उपयोग करें. ठंड के मौसम में पौधों को प्लास्टिक की चादर से ढकें.
4. रोग और कीट प्रबंधन
रोग प्रतिरोधी किस्मों का चयन करें.जैविक कीटनाशकों, जैसे नीम तेल और ट्राइकोडर्मा, का उपयोग करें. नियमित रूप से खेत की निगरानी करें और रोग/कीट प्रकोप का समय पर उपचार करें.कीटों को आकर्षित करने के लिए फेरोमोन ट्रैप और पीले स्टिकी ट्रैप का उपयोग करें.
5. फसल चक्र अपनाना
फसल चक्र अपनाकर मिट्टी में पोषक तत्वों की स्थिरता बनाए रखें. बैंगन के साथ फलीदार फसलों को शामिल करें, जो मिट्टी में नाइट्रोजन को स्थिर करने में मदद करती हैं.
6. पौधों की उचित दूरी
पौधों को 60-70 सेंटीमीटर की दूरी पर लगाएं. यह पौधों को पर्याप्त प्रकाश और पोषक तत्व प्राप्त करने में मदद करता है.
7. ग्रोथ रेगुलेटर का उपयोग
फूल बनने की प्रक्रिया को प्रोत्साहित करने के लिए ग्रोथ रेगुलेटर जैसे NAA (नेफ्थलीन एसीटिक एसिड) @ 20-25 पीपीएम या प्लानोंफिक्स @ 1मिली लीटर प्रति 5 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें. इसे फूल बनने की अवस्था में उपयोग करें.
8. मल्चिंग और जैविक विधियां
खेत में मल्चिंग करने से मिट्टी की नमी बनी रहती है और खरपतवार का नियंत्रण होता है. जैविक खादों और वर्मीकंपोस्ट का उपयोग करके मिट्टी की उर्वरता बढ़ाएं.
9. फसल की सही समय पर छंटाई
वानस्पतिक वृद्धि को नियंत्रित करने के लिए पौधों की छंटाई करें. यह पौधों को ऊर्जा बचाने में मदद करता है, जो फूल और फलों के विकास में उपयोग होती है.
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