टूटे सपने, बिखरी दुनिया, फिर भी अडिग हौसला
Bikas Pandey (Ethics Consultant and Media Advocacy with Solutions)
माध्यम रोशनी से भरे उस शांत कमरे में इन्तजार ख़त्म होने का नाम ही नहीं ले रहा था, पर वहीं गोपाल की आँखों के सामने एक आहट के साथ पूरा अतीत एक फिल्म की तरह चल रहा था। उसकी ज़िन्दगी के वो सारे लम्हे, जो कभी उसे प्रेरणा देते थे, अब धुंधले से लग रहे थे। उसके मन में एक ही सवाल था क्या उसने हमेशा गलत राह ही चुनी?
असाधारण सपनों के साथ आगे बढ़ रहा गोपाल ने विज्ञान की दुनिया में अपनी शुरुआत की थी। लेकिन जीवन में एक आईएएस अधिकारी बनने का खास मकसद पाने के लिए उसने दर्शनशास्त्र की गहरी और चिंतनशील राह चुनी। उसके मन में अधिकारी बनने की दृढ़ इच्छा थी, क्योंकि यह न केवल एक प्रतिष्ठा थी बल्कि समाज में एक सकारात्मक बदलाव लाने का जरिया भी था।
बचपन से ही गोपाल के दिल में एक सपना था एक IAS ऑफिसर बनने का, ताकि वह अपने समाज में बदलाव ला सके। उसका उद्देश्य सिर्फ एक ऊँचे ओहदे तक पहुँचना नहीं था, बल्कि देश और समाज की भलाई के लिए कुछ ठोस करने का जुनून था। इसके साथ ही, अपने सपनों में उसका दिल भी किसी के लिए धड़कता था। गोपाल को अपनी प्रेमिका का साथ भी था, जिसने उसके प्रयासों को नई ऊर्जा दी।
लेकिन जैसे-जैसे वो इस मंजिल के करीब आता गया, समय उसके हाथ से फिसलता गया। नियति ने उसकी परीक्षा ली, और उसके प्रेम ने उस वक्त साथ छोड़ दिया जब उसे सबसे ज्यादा जरुरत थी। उसका दिल टूट गया, उसके सपने चूर हो गए, और वह अपने ही अंधेरों में खो गया।
गोपाल की जिंदगी की राह में कठिनाइयों का कोई अंत नहीं था। उसने सिविल सर्विसेज की तैयारी में अपने कई वर्ष झोंक दिए। सिविल की कई स्तर की एग्जाम्स में उसने खुद को साबित किया। परंतु हर बार कुछ ना कुछ ऐसा हुआ जिसने उसके सपने को उससे दूर ही रखा। और फिर, नियति ने एक और चोट दी, उसका दिल टूट गया। जिस रिश्ते के लिए उसने अपना सर्वस्व लगा दिया था। वही रिश्ता एक दिन यूँ टूट गया जैसे वो कभी था ही नहीं। इस दर्द ने उसकी आत्मा को झकझोर दिया। दर्द को संजोए खुद को संभालना मुश्किल हो रहा था। लेकिन फिर ऐसा कुछ हुआ या यूँ कहें वक़्त के फरमान के आगे उसने खुद को ज़मींदोस कर दिया। अपने टूटे सपनों के टुकड़ों को पीछे बिखेरते हुए फिर से अनजानी डगर पर चल दिया। इस दर्द को ही उसने अपने जीवन की दिशा बदलने का बहाना बनाया।
गोपाल के जीवन का यह नया अध्याय सच को उजागर करने और उन लोगों की आवाज़ बनने के उद्देश्य से शुरू हुआ था, जिन्हें अक्सर अनसुना कर दिया जाता है। यह एक ऐसा काम था जिसमें वह खुद को समर्पित कर सकता था, जिसमें एक तरह की जिद्द और जुनून था। दिल टूटने के बाद, गोपाल ने अपना शहर छोड़ दिया और अपने जीवन की नई राह पर चल पड़ा। कलम को अपनी ताकत बनाने की ठान ली। एक ऐसा पेशा चुना जहाँ उसे न केवल समाज की सच्चाइयों को उजागर करने का अवसर मिला, बल्कि अपनी आवाज़ को भी एक मकसद बना दिया।
वो बड़ा शहर और उस शहर का चकाचौंध से भरा वातावरण उसके लिए शुरुआत में सब कुछ नया था, पर गोपाल ने अपने दिल पर लगाम लगाते हुए खुद को अपने काम में इस तरह झोक दिया मानो वो अपने दर्द को भूलने की हर पल कोशिश कर रहा था। वह हरदिन समाज के हर तबके के लोगों की कहानी, उनके दर्द को सुनता और उनकी समस्याओं पर अपनी लेखनी को बेरहमी से रगड़ता। पिछले 20 सालों में उसने इस क्षेत्र में नाम और पहचान दोनों कमाए। कई नामी गिरामी कम्पनिओं में अपनी सेवाएं दीं। लेकिन इस दौरान, उसने अपने दिल पर ताला लगाकर उसे बंद कर दिया लेकिन खुद बहुत कुछ सहा. काम का बोझ, ऑफिस की गन्दी राजनीति और समाज का नंगा सच देखकर रोज़ होने वाली निराशा उसे हरदम तोड़ने की साजिश करती थी। बहरहाल हर रोज़ वह इन चुनौतियों का सामना करता और खुद को और मजबूत बनाने की कोशिश करता रहा।
फिर आया कोविड-19 का कहर। यह वह दौर था जिसने पूरी दुनिया को झकझोर कर रख दिया। लॉकडाउन ने जैसे गोपाल की ज़िन्दगी का पलीता ही लगा दिया। उसे लगा, कहीं वो खुद को खोता जा रहा है। लेकिन कहते हैं न कि ईश्वर किसी न किसी को एक उम्मीद बनाकर आपके घर भेज ही देता है। कोरोना के समय लोगों की मदद कैसे की जाए इसी जवाब के तलाश में उसने फिर से ठान ली वेलनेस की दुनिया में अपने कदम रखने की। यह एक ऐसा सेक्टर था जिसने उसे नई उम्मीद दी। उसने देखा कि जब पूरी दुनिया एक बीमारी से जूझ रही थी। तब वेलनेस और हेल्थ के साधन ही लोगों को सहारा दे रहे थे। और यही से उसकी जिंदगी में एक और मोड़ आया।
वेलनेस और नेटवर्किंग का व्यवसाय अब उसकी ज़िन्दगी का हिस्सा बन चुका था। गोपाल ने धीरे-धीरे एक नामी-गिरामी अंतर्राष्ट्रीय ब्रांड के साथ मिलकर अपने व्यवसाय को मजबूत बनाना शुरू कर दिया। उसे लगा कि इस काम के जरिए वह लोगों की मदद कर सकता है, उन्हें मानसिक और शारीरिक रूप से मजबूत बना सकता है। उसके अंदर एक नई ऊर्जा आई, एक नया उत्साह का संचार हुआ। जब दुनिया में हर किसी को इसकी जरुरत थी। इसने उसे सिर्फ मानसिक शांति ही नहीं दी, बल्कि एक ऐसा सहारा भी दिया जो उसे आर्थिक मजबूती भी दे सकता था। वह अपने जीवन के दो पहलुओं – मीडिया और वेलनेस के बीच संतुलन बनाकर चल रहा था। लेकिन आर्थिक तंगी ने उसके सपनों को चूर चूर करने में कोई कसार नहीं छोड़ी.
बेरहम किस्मत को जैसे उसकी परीक्षा लेने का हरदम शौक था। कोरोना ख़त्म होने के करीब दो साल बाद, एक रात वह चैन से सोया। लेकिन अगली सुबह उसकी दुनिया उजाड़ हो चुकी थी। उस सुबह, उसकी आँखों के सामने एक अजीब सा धुंधलापन छा गया। पहले तो उसने इसे हल्के में लिया, लेकिन शाम तक उसकी दृष्टि लगभग पूरी तरह से चली गई। डॉक्टर ने बताया कि उसकी आँखों के परदे (Retina Detachment) फट गए हैं, जोकि एक आपदा जैसी स्थिति थी। डॉक्टर ने सलाह दी - इसके इलाज में लाखों का खर्च और महीनों का समय लगेगा, और हो सकता है कि आँखों की रोशनी पूरी तरह से वापस न भी आए। यह सुनकर उसकी रोशनी के साथ-साथ उसके सपने भी बिखरकर अन्धकार में कहीं खो गए। इस घटना के बाद उसके जीवन का सबसे कठिन दौर शुरू हुआ।
छह सर्जरी के दर्द और लाखों रुपयों के खर्च ने गोपाल को बुरी तरह तोड़ दिया। हर दिन का दर्द, हर सर्जरी की पीड़ा, दूसरों पर निर्भर रहने की मजबूरी और उस पर वह दस हफ्तों तक अपनी अँधेरी दुनिया के साथ बिस्तर पर पड़ा रहा। इस दौरान उसने महसूस किया कि उसके अधिकांश रिश्तेदार, दोस्त और यहाँ तक कि अपने भी धीरे-धीरे उसका साथ छोड़ रहे थे। जो कल तक उसके साथ खड़े थे। अब उसे अंधा और बेकार समझकर किनारे हो गए। उसकी ज़िन्दगी में एक घना अंधेरा छा गया, जिससे बाहर निकलना उसके लिए मुश्किल हो रहा था। लेकिन इस दुखद दौर में केवल कुछ ही लोग थे जिन्होंने उसका साथ नहीं छोड़ा।
महीने दर महीने गुजरते जा रहे थे। एक शाम टीवी पर चल रहे ब्लाइंड कलाकारों के एक म्यूजिकल लाइव प्रोग्राम ने गोपाल के मन में उथल-पुथल पैदा कर दी जैसे उसे लगा हो कि कुदरत ने उसे अपना फैसला सुना दिया हो। गोपाल ने महसूस किया कि उसकी यह कठिन यात्रा ही उसकी सबसे बड़ी ताकत है। उसने अपने भीतर झांककर देखा और उसने अपनी यात्रा के माध्यम से दूसरों को प्रेरित करने का संकल्प लिया। इस अंधेरे में भी उसे आशा की एक किरण दिखाई दे रही थी। जैसे कि कहीं न कहीं, उसके भीतर अभी भी एक चिंगारी बची थी। उस अंधेरे कमरे में बैठे-बैठे, उसने अपने भीतर की ताकत को टटोला।
वह अपने कॉलेज के दिनों को याद करने लगा। जब वह फिलोसोफी का छात्र था और उसने गोल्ड मेडल भी जीता था। उस समय उसने एथिक्स, लॉजिक और जीवन के गहरे रहस्यों को समझने की कोशिश की थी। उसी ज्ञान ने आज उसे एक नए उद्देश्य की ओर खींच लिया। उसने अपने दिल में दबे दर्द को फिर महसूस किया लेकिन अबकी बार उसका दर्द सिर्फ उसका नहीं था यह - कई लोगों की कहानी है, जिन्हें जिंदगी ने बेबस किया, समाज के सामने तोड़ दिया और राजा से रंक बना के छोड़ दिया, पर गोपाल ने फिर भी उम्मीद नहीं छोड़ी और उसने चिल्लाकर बोला कि एक बार फिर से करते हैं।
इस दर्द और इस अकेलेपन से बाहर आने के लिए, गोपाल ने तरह-तरह के जतन करने शुरू कर दिए। उसने अपने जीवन का एक नया उद्देश्य तय किया। उसने वेलनेस को अपनाया, लेकिन इस बार सिर्फ एक व्यवसाय के रूप में नहीं, बल्कि एक जीवन दर्शन के रूप में। अपनी फिलोसोफी और जीवन के अनुभवों को एकसाथ लाकर उसने अपने दर्शनशास्त्र के ज्ञान का लाभ उठाते हुए अपने जीवन को नैतिक मूल्यों पर आधारित किया। उसने खुद को एथिक्स कंसल्टेंट के रूप में स्थापित करने का फैसला कर लिया। उसका उद्देश्य अब केवल सफलता हासिल करना नहीं था; बल्कि, एक ऐसा जीवन जीना था जो दूसरों को प्रेरित कर सके, एक ऐसा जीवन जो ईमानदारी और सच्चाई से परिपूर्ण हो। गोपाल हरदम लोगों की मदद करना चाहता था, न केवल शारीरिक स्वास्थ्य में, बल्कि मानसिक और नैतिक विकास में भी। वह चाहता था कि लोग अपनी चुनौतियों से हार न मानें, बल्कि उन पर विजय प्राप्त करें।
एक संदेश
गोपाल की यात्रा आज भी जारी है। उसकी आँखों की रोशनी भले ही कमजोर हो गई हो, लेकिन उसकी जिंदगी में उद्देश्य का प्रकाश और भी मजबूत हो गया है। उसका जीवन एक ऐसी प्रेरणा बन चुका है, जो इस बात का प्रमाण है कि कठिनाइयों के बावजूद भी एक सार्थक जीवन जिया जा सकता है।
अगर आप भी अपने जीवन में स्पष्टता, नैतिक मार्गदर्शन, या स्वास्थ्य की तलाश कर रहे हैं, तो इस सफर में पहला कदम बढ़ाइए। गोपाल की यह कहानी आपको प्रेरित करने के लिए है, एक संदेश है कि चाहे परिस्थितियाँ कितनी भी कठिन क्यों न हों, हर व्यक्ति में अपने संघर्षों को शक्ति में बदलने की क्षमता होती है। गोपाल का यह सफर आपकी राह को रोशन करने के लिए है, आपका साथ देने के लिए है।
आज, गोपाल का जीवन उसकी पुरानी महत्वाकांक्षाओं से कहीं अधिक मूल्यवान है। उसका सपना अब बहुत बड़ा अधिकारी बनने का नहीं रहा, बल्कि दूसरों को राह दिखाने का बन गया है कि हर दर्द आपको एक नए अवसर की ओर ले जा सकता है, जो जीवन को नए सिरे से शुरू करने का हौसला देता है। अगर आप भी अपनी ज़िन्दगी में रोशनी की तलाश में हैं, तो इस कहानी को अपनी प्रेरणा बना लीजिये।
“जीवन का हर अंधेरा हमें एक नई रोशनी की ओर ले जा सकता है, बस एक लम्बी सांस लेकर हिम्मत से आगे बढ़ने की जरूरत है।”
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About the Author:
Bikas Pandey, equipped with an MA in Philosophy and MJMC, boasts a rich background in Journalism and Mass Communication. His dedication to upholding ethical standards in media shines through as he has sharpened his expertise across various mediums such as Print, TV, and Digital platforms. Functioning as both an Ethics Consultant and a Digital Product Business Strategist, Bikas showcases exceptional skills in developing content strategies that seamlessly blend integrity with cutting-edge innovation. His proficiency in two languages further amplifies his capability to traverse through diverse media environments effectively.
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NOVELIST, ADVERTORIAL WRITER & THESIS BOOSTER, CITIZEN JOURNALIST
1moVery good and very evocatively emotional yet lesson learning and confidence imparting piece which is worth millions in value and appreciation. May I recall one incident of my school going days! I must be hardly in 6th standard and we were writing exam. Suddenly, amidst paper writing exercise, one child complained of loss of vision. Incidentally, he was living nearby. Examiner sent message and that boy's parents came and took him away. During my daily trips to school as a student, I would watch that boy sitting in his small shop as a nook made in the front of his house, I still remember his dark circles around both eyes. The reason was all veins carrying blood to eyes got dried. Life struggle makes us forget so many important things and phases of life. But I still vividly remember that boy whom I have discussed in my novel 'Pale Shadow' -Pales into Significance available on Amazon. I self published it from Notion Publisher's portal. Just for you info please, best regards,