अमरीकी जासूसी का खतरनाक परमाणु यंत्र हिमालय पर गायब
-जयसिंह रावत
मध्य हिमालय के पर्यावरणीय दृष्टि से अति संवेदनशील ‘‘बायोस्फीयर रिजर्व’’ में नन्दादेवी पर्वत पर 1965 में लापता अमेरिका का जासूसी परमाणु उपकरण 55 साल बाद भी पर्यावरणवादियों के साथ ही आपदा प्रबंधकों को डरा रहा है। भारत की दूसरे नम्बर की सबसे ऊंची चोटी से चीन की जासूसी के लिये ले जाये गये इस उपकरण का पावर जेनरेटर प्लूटोनियम द्वारा ऊर्जित है, जिसकी उम्र अब भी कम से कम 40 बाकी मानी जाती है। यह उपकरण अगर अपनी ही गर्मी से बर्फ को पिघलाकर हिमाच्छादित क्षेत्र की किसी चट्टान की दरार में चला गया तो ठीक है, लेकिन कहीं यह ऋषि गंगा की ओर आ जाये या किसी ग्लेशियर में टूट कर बिखर जाय तो यह सम्पूर्ण गंगा नदी को प्रदूषित कर सकता है।
नन्दादेवी चोटी से चीन पर थी सीआइए की नजर
भारत 1962 के युद्ध की हार से उबरा भी नहीं था कि चीन ने 1964 में नन्दादेवी चोटी के उस पार सीमा से लगे अपने क्षेत्र में परमाणु परीक्षण कर डाला। इससे भारत का विचलित होना तो स्वाभाविक ही था मगर अमेरिका भी इससे हिल गया था। इसीलिये चीन की परमाणु गतिविधियों पर नजर रखने के लिये एक साल बाद अमरीकी खुफिया ऐजेंसी सीआइए ने इंटेलिजेंस ब्यूरो के सहयोग से भारत की दूसरे नम्बर की सबसे ऊंची चोटी नन्दा देवी ( लगभग 25,643 फुट) पर बीसवीं सदी का सबसे बड़ा जासूसी अभियान चलाया। लेकिन यह अति गोपनीय अभियान गुप्त नहीं रह पाया। इसका खुलासा अमेरिका की पत्रिकाओं और बेबसाइटों पर होने के बाद भारत की संसद में भी सन् 1978 से यदाकदा उठता रहा है। यही नहीं नन्दादेवी चोटी से कुछ से लापता हुये इस प्लूटोनियम से ऊर्जित उपकरण को खोजने के कम से कम 2 अन्य अभियान भी गुप्त नहीं रहे।
मेरारजी ने संसद में किया जासूसी का खुलासा
सबसे पहले अमरीकी पत्रिका ‘आउट साइड’ ने जब इस सनसनीखेज जासूसी काण्ड का खुलासा किया था तो भारत में इसकी प्रतिक्रिया होनी स्वाभाविक ही थी, क्योंकि उस समय भारत अमेरिका से दूर और सोवियत यूनियन के करीब था। इसलिये 17 अप्रैल 1978 को संसद में बात उठने पर प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई को बताना पड़ा कि यद्यपि भारत सरकार को नंदादेवी अभियान की पूरी जानकारी थी और यह दोनों देशों का संयुक्त प्रोजेक्ट था। देसाई ने सदन से कहा था कि उस समय की अंतर्राष्ट्रीय स्थिति को ध्यान में रखते हुए भारत और अमेरिकी सरकार ने फैसला किया था कि नंदादेवी के सर्वाेच्च शिखर के पास परमाणु शक्ति वाले एक रिमोट सेंसिंग उपकरण को लगाया जाना चाहिए। तत्कालीन विदेश मंत्री अटल बिहारी बाजपेयी ने भी सदन में घोषणा की थी कि भारत सरकार इसकी जांच करायेगी और उसी घोषणा के आधार पर देश के चोटी के वैज्ञानिक डा0 साहा की अध्यक्षता में डा0 आत्मा राम, एच.एन. सेठना, एम.जी.के. मेनन और राजा रमन्ना की सदस्यता वाले उच्च स्तरीय अध्ययन दल का गठन किया गया। बताया जाता है कि एडमण्ड हिलेरी को समुद्र से आसमान तक अभियान भी इसी का हिस्सा था जिसमें स्वयं कैप्टन कोहली भी शामिल थे। भारत सरकार ने लापता उपकरण से होने वाले पर्यावरणीय प्रभाव का अध्ययन करने की अनुमति 1993 में भी दी थी। सन् 1982 में नन्दादेवी राष्ट्रीय पार्क को मानवीय गतिविधियों के लिये पूर्णतः बंद कर इसे बायोस्फीयर रिजर्व घोषित किये जाने के पीछे भी एक कारण यही माना जाता है।
24 हजार फुट पर गायब हुआ प्लूटोनियम जेनरेटर
इस सनसनीखेज जासूसी अभियान का भारत की ओर से नेतृत्व करने वाले प्रख्यात पर्वतारोही और पद्मभूषण सम्मान से अलंकृत कैप्टन मनमोहन सिंह कोहली ने बाद में सह लेखक केनेथ जे. कोनबॉय के साथ लिखी अपनी पुस्तक ‘‘स्पाइज इन हिमालयाज’’ में पूरा ही खुलासा कर दिया। कोहली को उसके बाद अर्जुन पुरस्कार भी मिला था। कोहली के अनुसार यह अभियान इतना गुप्त था कि उनके अपने परिजनों को भी इसकी कानोंकान खबर नहीं लगनी थी। कैप्टन कोहली कहते हैं कि 18 अक्टूबर 1965 को ज्योंही उनका दल चोटी पर स्थापित करने के लिये प्लूटोनियम-238 ईंधन चालित सेंसर उपकरण सहित लगभग 24 हजार फुट की ऊचाई स्थित कैंप-4 पर पहुंचे तो खराब मौसम ने आगे बढ़ना असंभव कर दिया। इसिलये दल जान बचाने के लिये उपकरण वहीं पर छोड़ कर वापस होना पड़ा। लेकिन वही दल जब पुनः चोटी पर चढ़ने के लिये मई 1966 में कैंप-4 पर पहुंचा तो वहां बाकी सामान तो मिल गया मगर वह नाभिकीय जेनरेटर और सेंसर उपकरण गायब मिला। कोहली के अनुसार इस परमाणु चालित उपकरण में 6 अगस्त 1945 को हिरोशिमा में गिराये गये परमाणु बम के आधे के बराबर प्लूटोनियम था। इसके बाद 8 जुलाइ 1966 को कोहली को अर्जुन पुरस्कार मिलना था लेकिन इसी दौरान पूर्व अभियान में शामिल रहे इंटेलिजेंस के अफसर बी.एन. मलिक ने कोहली से कहा कि राष्ट्र के समक्ष अभूतपूर्व राष्ट्रीय आपदा की जैसी स्थिति पैदा हो गयी है, इसलिये वह पुरस्कार समारोह को छोड़ कर सीधे नन्दादेवी पर रिकवरी अभियान में शामिल हों।
सीआइए ने नन्दाकोट चोटी पर लगाया दूसरा सेंसर
कोहली कहते हैं कि भले ही 1965 का अभियान विफल हो गया था मगर 1967 में दूसरा अभियान चला जिसमें भारतीय पर्वतारोहियों की मदद से अमरीकी पर्वतारोही उसी क्षेत्र में 22,510 फुट ऊंची नन्दाकोट चोटी पर एक अन्य सेंसर उपकरण स्थापित करने में कामयाब रहे। ‘‘आउट साइड’’ पत्रिका की रिपोर्ट के अनुसार एक साल बाद जब ऐजेंसी का मकसद पूरा हो गया तो उसने इसे भी वहीं छोड़ दिया। लेकिन प्रधानमंत्री देसाई का संसद में कहना था कि भारत की धरती पर ऐसा कोई उपकरण नहीं रह गया।
अपनी गर्मी से बर्फ पिघला कर गायब हुआ यंत्र
अब चिन्ता का विषय यह है कि अगर वह प्लूटोनियम से भरा उपकरण अपनी ही गर्मी से बर्फ को पिघलाता हुआ खिसक कर धौलीगंगा में मिलने वाली ऋषिगंगा में आ गया या चूर-चूर हो कर ग्लेशियर में बिखर गया तो उसका रेडियेशन बहुत ही घातक हो सकता है। उसके विकीरण का असर पर्यावरण की दृष्टि से अति संवेदनशील नन्दादेवी बायोस्फीयर रिजर्व पर पड़ सकता है। धौलीगंगा विष्णुप्रयाग में अलकनन्दा से मिलती है और अलकनन्दा देव प्रयाग में भागीरथी से मिल कर गंगा बन जाती है। इससे समूची गंगा नदी भी प्रदूषित हो सकती है। नन्दादेवी ग्लेशियर समूह में 7 बड़े ग्लेशियर हैं, जिनमें उत्तरी और दक्षिणी नन्दादेवी ग्लेशियर लगभग 19-19 किमी लम्बे हैं। ऋषिगंगा का श्रोत यही ग्लेशियर हैं। अति संवेदनशीलता के कारण यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर घोषित नन्दादेवी बायोस्फीयर रिजर्व के 6407.03 वर्ग कि.मी. क्षेत्र में 712.12 वर्ग किमी कोर जोन, 5148.57 वर्ग किमी क्षेत्र में बफर जोन और 5148.57 वर्ग किमी ट्रांजिशनल जोन है। बफर जोन में 47 गांव और ट्रांजिशन जोन में 52 गांव शामिल हैं। कोर जोन के 712.12 वर्ग किमी क्षेत्र में इसमें पौधों की 600 प्रजातियां, पक्षियों की 200 प्रजातियां और पशुओं की 520 प्रजातियां है। पादप प्रजातियां में 17 दुर्लभ श्रेणी में हैं। यहां स्तनपाइयों में से कस्तूरी मृग, बर्फानी तेंदुआ और भालू जैसी 6 प्रजातियां संकटापन्न घोषित की गयी हैं। अगर पानी में रेडियो एक्टिव तत्व आ गये तो वन्यजीवन भी संकट में पड़ सकता है। इसलिये इस क्षेत्र पर निरन्तर निगरानी की जरूरत है।
नन्दादेवी क्षेत्र में रेडिएशन के खतरनाक संकेत
अमेरिका के वोरसेस्टर पॉलीटैक्निक संस्थान के सिविल एवं पर्यावरण अभियांत्रिकी विभाग के विभागाध्यक्ष मार्को कैल्टोफन ने वर्ष 2009 और 2010 में नंदादेवी से लिए गए नमूनों की परीक्षण रिपोर्ट में रोडियोएक्टिव पदार्थ की मौजूदगी के संकेत दिए हैं। परीक्षण में पाया गया कि वहां थोरियम मोनाजाइट भी बहुत कम मात्रा में मौजूद है। रिपोर्ट के अनुसार यह पदार्थ रोडियोएक्टिव तत्व थोरियम एवं यूरेनियम की उपस्थिति को बताता है। परीक्षण रिपोर्ट के अनुसार नमूनों में विशुद्ध यूरेनियम आक्साइड के कण भी पाए गए हैं। परीक्षण में परमाणु भार 232 वाला थोरियम एवं यूरेनियम-238 के रूप में थोरियम पाया गया है, जो कि इन तत्वों के प्राकृतिक गुण-धर्म के रूप में उपस्थिति दर्शाता है। हालांकि प्लूटोनियम की उपस्थित निम्न स्तर की पायी गई।
अमेरिकन लेखक एवं पर्वतारोही पीट टकेडा ने अपनी पुस्तक ‘‘एन आइ एट द टॉप ऑफ द वर्ल्ड’’ में लिखा है कि उसने 2004 से लेकर 2007 के बीच नन्दा देवी क्षेत्र के पानी और मलबे के दो नमूने लिये और दोनों को अलग-अलग प्रयोगशालाओं में जांच के लिये भेजा तो वर्ष 2008 में आयी एक प्रयोगशाला की रिपोर्ट में नमूनों में प्लूटोनियम के कोई संकेत न होने की बात कही गयी, जबकि दूसरी प्रयोगशाला की जांच में प्लूटोनियम की मौजूदगी के प्रमाण मिले हैं। टकेडा का कहना है कि भार सरकार इस मामले में कतई चिन्तित नजर नहीं आ रही है।
जासूसी यंत्र में प्लूटोनियम भरी 7 छड़ें थीं
अपनी पुस्तक में टकेड़ा ने लिखा है कि इस परमाणु चालित ऊर्जा जेनेरेटर में सीसे के ब्लाक के अंदर 7 धातु की छड़ें हैं जिनमें प्लूटोनियर्म इंधन भरा हुआ है। टकेड़ा का कहना है कि इन कैप्सूलनुमा छड़ों में 18 प्रतिशत प्लूटोनियम-239 (पीयू-239) के मिश्रण वाला प्लूटोनियम-238 भरा हुआ है। पीयू-238 ईंधन पीयू-239 के मुकाबले कहीं अधिक ताप देता है, जो कि नाभिकीय हथियारों में विस्फोटक या विखंडन के लिये प्रयुक्त किया जाता है। पीयू-238 का अर्धजीवन 87 साल होता है। लेकिन जब इसमें पीयू-239 का मिश्रण किया जाता है तो इसकी आयु और ऊर्जा पैदा करने की क्षमता बहुत बढ़ जाती है। टकेडा के अनुसार कई दशकों तक चलने वाला या परमाणु उपकरण या तो चट्टान की किसी दरार में चला गया फिर किसी पहाड़ पर ही बर्फ में दबा हुआ है।
रेडिएशन से शेरपाओं को कैंसर
टडेका ने रॉकैंडाइस डॉट कॉम बेबसाइट में अपने लेख में कहा है कि वह मैककार्थी नाम के उस अमेरिकी पर्वतारोही से मिला जो कि जासूसी उपकरण को नन्दादेवी की चोटी पर स्थापित करने वाले अभियान में शामिल था और जिसने दावा किया था कि उसी ने उपकरण को संभाला था और उसी ने पोर्टरों पर उसे लादा भी था। मैकार्थी ने टकेडा को बताया कि वह स्वयं वृषण संम्बन्धी कैंसर का शिकार हुआ था और लम्बे इलाज के बाद स्वस्थ हो पाया था। उपकरण को ढोते समय शेरपा आपस में इसे लेने के लिये झगड़ रहे थे। उन्हें पता नहीं था कि यह क्या चीज है। इसीलिये बर्फीले इलाके में इसकी गर्मी का आनन्द लेने के लिये वे रात को टेंट में इस उपकरण के चारों ओर जमघट लगा लेते थे। उसे पूरा यकीन है कि उन पोर्टरों में से कोई भी नहीं बचा होगा। मसूरी के लेखक स्टीफन ऑल्टर ने अपनी पुस्तक ‘‘बिकमिंग अ माउंटेन’’ में भी इस प्रकरण का उल्लेख करते हुये कहा है कि जो स्थानीय पार्टर इन परमाणु चालित उपकरण को ले गये थे, उनमें से कुछ की मौत रेडियेशन के कारण कैंसर से हुयी थी। इन्हें ले जाने के लिए स्थानीय गांव मलारी आदि से 35 पोर्टर लिए गए थे।
जयसिंह रावत
ई-11, फ्रेंड्स एन्कलेव, शाहनगर
डिफेंस कालोनी रोड, देहरादून।
उत्तराखण्ड।
मोबाइल-9412324999