किसान उत्पादक संगठन (FPO) संचालन के सिद्धान्त
डॉ. रवीन्द पस्तोर, सीईओ, ई-फसल
मध्यप्रदेश में पहले किसान उत्पादक संगठन का गठन वर्ष 2003-2004 में किया गया था। तब से लेकर आज तक हम किसान उत्पादक संगठनों के साथ काम कर रहे हैं। इन सालों में कुछ सफलता की कहानियाँ बनीं तो अधिकांश असफलता की दस्तानों का निर्माण हुआ है। हाल में लिंकडिन पर हमारे परिचित श्री शाजी ज़ोन द्वारा एक अध्ययन रिपोर्ट पोस्ट की गई जो उनके द्वारा सूचना के अधिकार के तहत तथा एफ़एसएसी की वेबसाइट से जुटाई गई जानकारी पर आधारित इन किसान उत्पादक संगठनों की आर्थिक व कम्पनी अधिनियम के तहत क़ानून पालन की स्थिति का विश्लेषण किया गया है जिसमें बताया गया कि मध्यप्रदेश में वर्ष 2011 से 2020 तक प्रदेश में कार्यरत 15 स्वं सेवी संस्थाओं तथा एक सरकारी संस्थान का चयन सहयोग संसाधन संस्था (RI) कर इनके माध्यम से 147 किसान उत्पादक संगठन का पंजियन कम्पनी अधिनियम के तहत किया गया। इनमें से 144 किसान उत्पादक संगठनों के द्वारा क़ानूनी प्रावधानों का पालन न करने के कारण अब तक रू 21 करोड़ से अधिक का जुर्माना चढ़ गया है। एफ़एसएसी द्वारा पंजीकृत करवाए गये किसान उत्पादक संगठनों में से केवल तीन संगठनों का काम ठीक चल रहा है, 30 किसान उत्पादक संगठनों को एमसीए द्वारा स्ट्राइक ऑफ कर दिया गया है जिनमें किसानों के रू 60 लाख जमा था। शेष 141 किसान उत्पादक संगठनों में कुल पूँजी रू 6 करोड़ थी लेकिन इनका जुर्माना इस राशि से अधिक हो गया है। इन किसान उत्पादक संगठनों को गठित करने वाले सहयोग संसाधन संस्थान को प्रति किसान उत्पादक संगठन के लिए कार्य करने के लिए रू 35 लाख की फ़ीस का प्रावधान किया गया था।
किसान उत्पादक संगठनों के गठन में सहयोग करने वाली 16 संगठनों में से 11 संगठनों को दस हज़ार किसान उत्पादक संगठनों की वर्ष 2021 में लागू की गई योजना के तहत 431 नये किसान उत्पादक संगठनों के गठन का काम पुनः सौंप दिया गया है
उपरोक्त अध्ययन हमें यह सोचने के लिए मजबूर करता है कि किसान उत्पादक संगठनों की योजना लागू करने में क्या ग़लतियों पूर्व में हुई और क्या वर्तमान में देश में चालू दस हज़ार किसान उत्पादक संगठनों की योजना में उन ग़लतियों से सबक़ लेकर रणनीति में बदलाव किया गया या नहीं। क्योंकि इस योजना का बजट रू 6,865 करोड़ का है।
वर्तमान में यदि हम किसान उत्पादक संगठनों के निर्माण व संचालन में काम करने बाले विभिन्न स्वदेशी व विदेशी संगठनों के नेट पर उपलब्ध आपरेशन मैनुअल व अन्य साहित्य को देखें तो अधिकांश ने डीपीआईपी मध्यप्रदेश द्वारा जारी वर्ष 2004 के मैनुअल की झलक देखने को मिलती है। क्योंकि किसान उत्पादक संगठनों के गठन का काम करने में मध्यप्रदेश अग्रणी राज्य रहा है तथा किसान उत्पादक संगठनों के लिए सरकार के स्तर पर पॉलिसी व बजट प्रावधान करने बाला देश में पहला राज्य था। लगभग सभी उपलब्ध साहित्य किसान उत्पादक संगठन को किस तरह गठित व संचालित किया विषय पर व्यापक रूप से लिखा गया है। लेकिन किसान उत्पादक संगठनों का व्यवसाय किन सिद्धांतों पर किया जाएगा, विषय पर बहुत कम साहित्य उपलब्ध है।
मेरा मानना है कि ईज ऑफ डूईग बिज़नेस की नीति के कारण किसान उत्पादक कम्पनी गठित करने की आन लाइन प्रक्रिया अत्यंत सरल व सुगम हो गई है। इस लिए अब समय आ गया है कि हम किसान उत्पादक संगठनों के बोर्ड ऑफ डायरेक्टर व मुख्य कार्यपालन अधिकारी व उनकी टीम को इस बात के लिए ट्रेनिंग दे कि उनको किसानों की किस समस्या के निराकरण से काम शुरू करना चाहिए। क्योंकि भारत सरकार, कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय द्वारा वर्ष 2020 में जारी 10,000 किसान उत्पादक संगठनों (एफ़पीओ) का गठन और संवर्धन संचालन दिशानिर्देशका में आठ तरह की सेवाओं व गतिविधियों को करने की अपेक्षा की गई है
कोई भी नया व्यवसाय शुरू करने पर हम सामान्यतः कुछ ग़लतियाँ करते ही है। इन ग़लतियों में
पहली गलती हैं कि हम वास्तविक समस्या की पहचान नहीं कर पाते हैं। जैसे किसान उत्पादक संगठन का गठन हम गरीबी समाप्त करने या खेती को लाभ का व्यवसाय बनाने के समाधान के लिए कर रहे है। लेकिन ग़रीबी या खेती की अलाभकारिता शब्द सामान्य शब्द है। इन शब्दों के अनेकों पहलू है। यह विशिष्टता परिभाषित या चिन्हित समस्या के पहलू का स्वरूप नहीं है। इसलिए हम असल समस्या को विशिष्ट रूप से परिभाषित किये समाधान की खोज करते हैं तो वह सामान्य समाधान ही होते है जैसे बिना यह चिन्हित किए कि किसान उत्पादक संगठन का गठन कर हम समस्या के किस पहलू का हल करेंगे।
दूसरी गलती है कि हमें समस्या से प्यार हो जाता है। जैसे गरीबी शब्द समस्या का सामान्यीकरण है न कि विशिष्ट समस्या इसलिए "अधूरे विचार" पर अटक जाना एक व्यापक समस्या है जिसका सामना बहुत से संभावित संस्थापक करते हैं। जैसे पहले हम सोचते थे कि स्व सहायता समूहों से ग्रामीण समस्याओं का समाधान हो सकता है लेकिन अनेकों साल तक काम करने के बाद हम जान गये कि इस माडल से ग़रीबी दूर नहीं हो सकती है तो फिर हम ग्राम स्तर पर VO बनाने लगे हमने सहकारी समितियाँ गठित की और अब हम सोचते हैं कि किसान उत्पादक संगठनों FPO के साथ समस्या का आसानी से हल किया जा सकता है।
तीसरी गलती यह है कि हम विचार का मूल्यांकन नहीं करते है। हम किसान उत्पादक संगठनों का पंजीकरण सरकार के टार्गेट के आधार पर करते जा रहे हैं। जबकि केवल एक किसान उत्पादक संगठन जो कम्पनी अधिनियम के तहत पंजीकृत हैं तो उसके माध्यम से पूरे विश्व में बिज़नेस किया जा सकता है।
चौथी गलती जो हम करते हैं वह यह जानना है कि क्या हमारे पास बाजार के लिए उपयुक्त रणनीति है? क्या टीम इस रणनीति पर काम करने की योग्यता, अनुभव व साधन रखती है? इसलिए हमें अपनी टीम के लिए एक अच्छा विचार चुनना चाहिए।
पाँचवीं गलती में हम यह सुनिश्चित नहीं करते है कि बाजार कितना बड़ा है?
छटी गलती है कि हम जिन के लिए काम करना चाहते हैं उनके के लिए यह समस्या कितनी गंभीर है? वे भी क्या समस्या के प्रस्तावित समाधान पर काम करना चाहते हैं
सातवीं गलती है कि हम यह नहीं देखते कि हमारी प्रतिस्पर्धा किन के साथ है? इस कारण हम अनजाने ही प्रतिस्पर्धी के ट्रेडिंग मॉडल की नक़ल कर लागू करना शुरू कर देते है जबकि हमारे पास उनके जैसे संसाधन व अवसर नहीं होते है। तो हमें उनसे उलट सेवा मॉडल अपनाना चाहिए। जिसमें हमें अपने लक्षित समूह से जानना चाहिए कि वे क्या यह चाहते हैं? क्या वे सरकारी सहायता के बिना यह करना चाहते हैं? क्या यह माडल हाल ही में लागू करना संभव या आवश्यक हो गया है?
आठवीं गलती यह है क्या यह एक ऐसा विचार है जिस पर हम बिना सरकारी मदद के वर्षों तक काम करना चाहेंगे? और
नौवीं गलती यह है कि क्या यह एक स्केलेबल व सेल्फ़ सस्टेनेबल व्यवसाय है? क्योंकि कृषि क्षेत्र आकर्षक क्षेत्र नहीं है, एफपीओ व्यवसाय का विचार आकर्षक विचार नहीं हैं, लेकिन क्या वास्तव में हमारी टीम उसे अच्छा बना सकते हैं। व्यापार करना हमेशा से कठिन विचार रहा है तो क्या हमारे पास ऐसी टीम है जो ऐसे विचार पर काम करने की क्षमता रखती है जिसे शुरू करना कठिन है जो विचार उबाऊ है तथा जो बहुत सारी प्रतिस्पर्धियों वाला विचार है। जिसमें परिणाम बहुत लम्बी अवधि के बाद मिलते है। इन प्रश्नों पर विचार विमर्श किए बिना किसान उत्पादक संगठन शुरू नहीं करना चाहिए।
एफ़पीओ के लिए ट्रेडिंग माँडल हमेशा बहुत अधिक पूँजी निवेश तथा जोखिम भरा होता है इसलिए एफ़पीओ को हमेशा सर्विस माँडल पर काम करना चाहिए। ट्रेडिंग मॉडल में कार्यशील पूंजी, बुनियादी ढांचे, जनशक्ति की आवश्यकता के कारण शुरू में एफ़पीओ के पास संसाधनों की कमी होती है। जबकि
सेवा मॉडल- अग्रिम मांग संग्रह- अग्रिम भुगतान- समूह खरीद- डिलीवरी केंद्रों पर डिलीवरी पर आधारित समावेशी व्यवसाय करने की व्यवस्था है। जिसमें सदस्यों के साथ मिलकर काम करना चाहिए।
एफ़पीओ बनाने का विचार उन उत्साही किसानों को आना चाहिए जो खेती की वर्तमान व्यवस्था से दुःखी होकर इस व्यवस्था को बदलना चाहते है। लेकिन जब यह विचार किसी सरकारी एजेंसी या किसी स्व सहायता संगठन का होता है तो उसको लागू करना बहुत मुश्किल, खर्चीला व अप्रभावी होता है। जैसा कि हम भारत सरकार, कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय द्वारा वर्ष 2020 में जारी 10,000 किसान उत्पादक संगठनों (एफ़पीओ) का गठन और संवर्धन योजना में देख रहे है जिसका बजट रू 6,865 करोड़ का है व जिसमें क्लटर वेस्ट बिज़नस ओरगनाईजेशन या क्लस्टर आधारित व्यापार संगठन (CBBO) की फ़ीस प्रति किसान उत्पादक संगठन रू 58 लाख का प्रावधान है। स्वतंत्रता के लगभग 100 वर्ष तक हमारी सरकारें शायद यह मान कर ही चल रही है कि किसान को खेती नहीं आती उसे सरकार या अन्य कोई संगठन जो स्वयं खेती नहीं करते है वे खेती सिखा सकते है। इसी विचार के कारण हमारे यहाँ जो खेती नहीं करते वे खेती सिखाते है तथा जो बिज़नेस नहीं करते वे बिज़नेस करना पड़ाते है। इस कारण हमारे देश में एक डेवलपमेंट माफ़ियों का जन्म हुआ और उन्होंने हितग्राहियों के हाथों से विकास के संसाधनों को छीन कर अपना क़ब्ज़ा कर लिया है। अतः सरकार कोई भी हो, योजना कैसी भी हो उसका क्रियान्वयन एक जैसी संस्थाओं द्वारा किया जा रहा है। यदि हमारी सरकार अंग्रेज़ी की बाध्यता को समाप्त कर स्थानीय भाषा में काम करने की स्वतंत्रता दे, तो व्यवस्था से पीड़ित लोग बदलाव के लिए जो रणनीति बना कर काम करेंगे तथा जो परिवर्तन लाएँगे वे टिकाऊ, किफ़ायती व अपनाने योग्य होंगे। जो लोग व्यवसाय से पीड़ित नहीं है उनके लिए इस तरह की योजनाएँ परिवर्तन का नहीं बल्कि कमाई का ज़रिया है। यह हितों का टकराव (Conflict of Interest) है हम ग़लत जगह सफलता की उम्मीद लगा रहे है। अतः अब परिवर्तनकारी योजनाओं का क्रियान्वयन हितग्राहियों को देने का समय है। क्योंकि डिजिटल क्रान्ति के कारण जानकारियों की उपलब्धता की दीवारें गिर गई है और अब योजनाओं के संसाधनों को डायरेक्ट ट्रांसफ़र का ज़माना है।
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1moGood Information sir ji
BIOLOGICALS-Nourishing the Soil, Nurturing Lives
1moVery informative