Embracing the mystical reflections of beauty
तजल्ली का खुमार-ए-आबगीन तेरा है आइनाःअदा है
फरेब-ए-हुस्न पर आया मैं, तू अक्स ए नूर ए पैवंदा है।
गुलों की तिश्नगी में डूबता है जिस्म-ए-आबगीं का सच,
कोई कहे किसे हसरत, कोई समझे तो निगार ए मुरादा है।
सिलसिला वजूद-ए-शब में खिलते हैं सहर के जुगनू अब,
कहाँ से आ गए ताब-ए-सबा की राह में नग्मा आजादा है।
फलक के पर्दों में झाँके हैं तूफ़ान-ए-दिल के तार यकसा,
निगाहें बेचैन फिर कि आफ़ताब बिखरा दस्त ए इमदांदा है।
दिल से उसी रस्ता-ए-सहर में, हैं हज़ारों ख़्वाब जो उड़ें,
खाक-ए-राह में चमकते हुए ख़्वाहिश के साये उफतांदा हैं।
मुश्ताक़-ए-समदा तक हो चुके हैं ज़र्रे रोज़न में हर खता
जुस्तुजू-ए-आदाब में, रहगुज़र फिर से खाफ़ा ए बरंकदा है।
हमें हर मौज कहती है रूहानी तरन्नुम मे खुशबुओ सें,
मंज़र-ए-साद से ज़िंदा हो रहे हैं सदाख़्वाह फरियादा है।
ख़ाकसार-ए-सद्र-ए-तिश्नगी, तेरा इख़्तियार डूबाया जाए,
इख़्तिताम-ए-दौर में इज़ाज़त की जुर्रत आश्ना ए वफा है।
खलिश-ए-इश्क़ में लिपटे हुए हैं चश्म-ए-ख़्वाहिश के धागे,
सवेरा देखले अभी सहर में तन्हाई का दीदार ख्वाहिस मंदा है।
अजनबी हो गए हैं मेरे ख़्वाब भी अब खुद से मुसीबत से ,
जुदासा रंग लिए फिर दिल की तह में है शोक अफजदा है।
सदा की है तड़प उस की निगाहों की गहराई में, सनम में
लहर लहर जो बह रही है वो तासीर का असर मंसदा है।
मुकम्मल है ये हिज़्र की रातें अब उस की याद में,शान में
ख़ामोशी कहे दर्द-ए-हस्ती का इज़हार जुल्म रंवादंवा है।
हवा-ए-चमन से निकली रुत भी मुअत्तर हो चली,रात में
गुलाब ख़ुश्बू में छुपा हुआ था राज़-ए-उल्फ़त मुनाफदा है।
जिन्हें थी आरज़ू मुझ से वो चेहरे बेमिसाल थे,कमाल थे
दिल के ज़ख्म का इलाज शायद ये ख़ुशबू कागजंदा है।
गुज़ारिश-ए-बेहोशी में भी याद रखी ज़ुल्फ़ों की सदा,
बरसों के बाद भी जले थे उनके दीदार ए प्यासा हैं।
सावन के बादल भी सनम रो कर कहें वो दर्द-ए-लरज़ा है,
दिल की ख़ामोशी में बेबाकी से बजी है रौंनक ए सांझा है ।
चराग़-ए-दिल के अंजुम में जलता है हुस्न का अक्स,
तमन्ना के हवाले कर दी तुझसे मिली हुई मिलजांदा है
फरेब-ए-इश्क़ की कशिश में हूँ ये दरिया मेरे संग बहा ली,
शिकस्तगी-ए-दिल में अब भी वो पाकीज़ा असरार मानदा है।
निगाह-ए-हसरत बिछा गई वो राहों में आरज़ू, जला के
मेरी मंज़िलें अब भी जुस्तुजू-ए-ताजुबात में बहती हैं।
तू ही है मसीहा इन वीरानियों का, ऐ मौज-ए-खुदा,
तेरी बाँहों में छुपा वो राज़-ए-इबादत का तजुरबा।
तुम्हारी हया ने कर दी रुख-ए-सुब्हे-हुस्न फिदा,
तारों की महफ़िल में वो हुस्न की लौ बिखरी है।
निगाहों की राह में दिल पे बरसें हैं जज़्बात-ए-बेकारार,
मेरा जिगर कहे नुमाया ने सुनाई बेख़ुदी ए ताकत सदा।
संगीन सा असर है इश्क में तिरा नाम लूँ हर पल,ईमान से
परवर्दा के वास्ते ही सही मगर अब जिगर खुश फहमंदा है
बढ़ता हूँ परछाईयों से भी आगोश-ए-गुल की ओर, दिलसे
तेरे लम्हों की ख़ुशबू से महक रही है मेरी ताकत बख्सता है।
मेरा दिल सहरा-ए-तन्हाई में भी है जलता हुआ, संभलता हुआ
शोक गुज़ारिश कर के चलूँ मैंभी उन के आशियाँ ए फंरजांदा है।
तेरे नूर से चमक उठा है हर इक परछाई में सच,छुपाया भी
मुझसे मिलकर तसव्वुर में भी तेरी मंज़िलें ख्वाब उफजांदा हैं।
आखिर-ए-शाम में जो जल उठे हैं ये शमा-ए-दिलासा है,
वो एक निगाह का असर है या सदा-ए-इश्क़ रफादफा है।
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तजल्ली (Tajalli) - दिव्य प्रकाश या रोशनी
खुमार-ए-आबगीन (Khumar-e-Aabgeen) - नाज़ुक कांच का आकर्षण या नशा
आइना (Aina) - दर्पण
अदा (Ada) - सुंदरता, आकर्षण
फरेब-ए-हुस्न (Fareb-e-Husn) - सुंदरता का धोखा
अक्स ए नूर (Aks-e-Noor) - प्रकाश का प्रतिबिंब
तिश्नगी (Tishnagi) - प्यास या लालसा
निगार ए मुरादा (Nigar-e-Murada) - प्रिय छवि या वांछित छवि
वजूद-ए-शब (Wajood-e-Shab) - रात का अस्तित्व
सहर (Sahar) - भोर या सुबह
जुगनू (Jugnu) - जुगनू
ताब-ए-सबा (Tab-e-Saba) - सुबह की ठंडी हवा की चमक
नग्मा आजादा (Nagma Azada) - स्वतंत्रता का गीत
फलक (Falak) - आकाश
तार (Taar) - तार
निगाहें बेचैन (Nigahain Bechain) - बेचैन निगाहें
आफ़ताब (Aaftab) - सूरज की रोशनी
दस्त ए इमदांदा (Dast-e-Imdanda) - मदद करने वाला हाथ
ख़्वाहिश (Khwahish) - इच्छा
उफ़तांदा (Uftanda) - पड़ा हुआ, गिरा हुआ
मुश्ताक़-ए-समदा (Mushtaq-e-Samda) - पवित्रता या आध्यात्मिकता की लालसा
बरंकदा (Barankda) - बिखरा हुआ
तरन्नुम (Tarannum) - गीत या मधुर ध्वनि
सदाख़्वाह (Sadakhwah) - आवाज़ या पुकार के लिए तड़प
फरियादा (Faryada) - प्रार्थना या निवेदन
इख़्तियार (Ikhtiyar) - अधिकार या नियंत्रण
इज़ाज़त (Izaazat) - अनुमति
खलिश-ए-इश्क़ (Khalish-e-Ishq) - प्रेम की टीस
चश्म-ए-ख़्वाहिश (Chashm-e-Khwahish) - इच्छाओं की निगाहें
दीदार (Deedar) - दर्शन
अफजदा (Afzda) - बढ़ी हुई
तासीर (Taseer) - प्रभाव
हस्ती (Hasti) - अस्तित्व
जुल्म रंवादंवा (Zulm Ranwadwa) - निरंतर अत्याचार
चमन (Chaman) - बाग़
मुअत्तर (Muattar) - सुगंधित
उल्फ़त (Ulfat) - स्नेह, प्रेम
मुनाफदा (Munafda) - धोखा
आरज़ू (Arzoo) - इच्छा
जुस्तुजू (Justuju) - खोज, तलाश
परवर्दा (Parwarda) - पाला-पोषा हुआ
सहरा-ए-तन्हाई (Sehra-e-Tanhai) - अकेलेपन का रेगिस्तान
तसव्वुर (Tasavvur) - कल्पना
शमा-ए-दिलासा (Shama-e-Dilasa) - सांत्वना का दीपक
रफादफा (Rafadafa) - अस्वीकृति या इंकार
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जुगल किशोर शर्मा, बीकानेर
मनन करें चिंतन करें और कर्म का भाव रखें - लोकः समस्ताः सुखिनो भवन्तु में समाहित सहज सनातन और समग्र समाज में आदरजोग सहित सप्रेम स्वरचित - आदर सहित परिचय मैं जुगल किशोर शर्मा, बीकानेर में रहता हूॅं लेखन का शौक है मुझे स्वास्थ्य,सामाजिक समरसता एंव सनातन उद्घट सात्विकता से वैचारिकी प्रकट से लगाव है, नियमित रूप से लिंक्डिंन,युटूयूब,मातृभारती, अमर उजाला में मेरे अल्फाज सहित विभिन्न डिजीटल मीडिया में जुगल किशोर शर्मा के नाम से लेखन कार्य प्रकाशित होकर निशुल्क उपलब्ध है समय निकाल कर पढें ।
1. उजाले या राम राम इख़्लास-ओ-रूबराई का यह दिल है सदा-दादा तिरी बहर ए मसीहाई का शायर कहता है कि दिल में चाहे उजाले हों या ईश्वर का नाम हो, मेरा दिल हमेशा तुम्हारी मसीहाई (चमत्कारिक उपचार) के गुणगान में रमा रहता है।
2. हसरतें गर रक्स करें, ख़्वाब में मिल जाए सुकूनाई सा आवाज़ में असर हो, नज़र में हो गौर-ए-तवानाई का अगर मेरी हसरतें नृत्य करने लगें और ख्वाबों में सुकून का अहसास मिले, तो मेरी आवाज़ में प्रभाव हो और नज़र में ताकत की गहराई हो।
3. है मुझे हक़ कि कहूँ और कह दूँ इजराई क्या ख़्वाहिश-ए-तजल हीं, बस सवाली ए सुनाई़ का मुझे यह हक है कि मैं खुलकर कहूं और कह दूँ। मेरी ख्वाहिश ताज्जुब भरी है, बस सजीवता की तलाश में हूं।
4. हर इक हाँ में न हाँ, इन्कार में है एक हुनर ये मशविरा दे बस मेरे कलम-ए-प्याराई का हर 'हाँ' में एक 'न' भी होती है, और इन्कार में भी एक विशेष कला होती है। यह मेरा प्रेमभरा कलम ही मुझे यही सलाह देता है।
5. राह-ए-सबक़त नहीं, हैरतन-ए-शौहरत का क्या बंदगी मेरी बस है सफ़र-ए-उरूज-ए-सरगर्मी का मुझे प्रसिद्धि के रास्ते पर नहीं जाना है, मेरी इबादत का रास्ता सिर्फ उत्साह और ऊँचाई का सफर है।
6. नाजिम मुझसे इक लफ़्ज़ भी ग़ैर का कहलाए नहीं फख्र लाज़िम है इज़्ज़त मेरी रूह-ए-तहकीक़ी का मुझे गर्व है कि मेरी जुबान से किसी बाहरी (गैर) का एक भी लफ्ज़ नहीं निकला। मेरी इज़्ज़त मेरे खोजी और आत्मा के सत्य का हिस्सा है।
7. बहस का वुकला महशर वो में एक मुद्दई तुम रहो होगा रब के दर पे तब इल्म-ए-अदाअजाई का महशर के दिन सब बहस के वकील होंगे और तुम मुद्दई (दावा करने वाले) रहोगे। उस दिन रब के सामने इंसाफ़ का ज्ञान सामने आएगा।
8. नाज़-ओ-अंदाज़-ए-वफ़ार पर तुझसे आँखें तरेर या इम्तिहान ये है मेरे ताब-ए-इख़्लास-ए-फन्नाई का अगर तुम मेरे नाज़ और अंदाज़-ए-वफा (वफादारी का ढंग) पर अपनी नज़रें घुमा भी लो, यह मेरे इख़्लास (सच्चाई) की काबिलियत का इम्तिहान होगा।
9. तिरी फितरत नाम मेरा “हो सकता था“ है, “ख़ैर“ कहो पर लुत्फ़ क्या अब है मेरे वजूद-ए-इबादतगुजाई का तुम्हारी फितरत ने मेरा नाम "हो सकता था" रखा है, चलो कह दो "ख़ैर"। पर मेरे इबादत के अस्तित्व में अब क्या लुत्फ है?
10. अदा से ज़ख़्म देनी की मस्लसल जो तिरी, बढ़ता ही रहे मसीहा भी हूँ, क़ाबिल-ए-शिफ़ा है दर्द-ए-तेरी बुझाई का तुम्हारे अदा से जो मुझे लगातार चोट मिलती है, वो जारी रहे। मैं मसीहा भी हूँ, और तुम्हारे दर्द को बुझाने की काबिलियत भी रखता हूँ।
11. जब से जल्वा-ए-यार देखा, गर आसमा याद आया किस्वत में आगाज़ हुआ है अरमान-ए-तन्हाई का जब से मैंने अपने प्रिय का जल्वा (दर्शन) देखा है, मुझे आसमान याद आ गया। अब मेरी तकदीर में तन्हाई की ख्वाहिशों का आगाज़ हो गया है।
यह नज़्म शायर के दिल के गहरे अहसासों, ख्वाहिशों और संघर्षों को बेहद खूबसूरत अंदाज़ में पेश करती है। यह उनकी रूहानी सफर और प्रेम से जुड़े मुद्दों पर रोशनी डालती है।