Themes of patience, sacrifice, and mysticism
बेतिरी देखली धोके में कुछ हकार के सिवा
असलियत सोदाई की तेरे बहार के सिवा
शरमाया दिल में, बस इतना समझ ले
तेरे बिन कुछ नहीं, मिरे बेजार के सिवा
बेसबब हुस्न जैसे आफ़ताब-ए-याख़रिद
तन्हाईया भी रोशन है इजहार के सिवा
तलाश की है जोश ए मिल्लत शायर मगर
सबर खोया कुछ नहीं, वो बेकरार के सिवा
रंग ए दिल ए करार मुस्तकील और नहीं रहा
मंज़िल नहीं रही, बेबस बेजुबा यार के सिवा“
हर सांस खाकसारी मंजर तुझी से जुड़ा है
अक्कास नज़ारे हैं सारे, इक इनकार के सिवा
तू जो न था, तो इक साया भी संग न था
अश्क़ है मेरी ताकत, उस पुरसरार के सिवा
मस्त ओ बे खुद जब मैं आशिक़े माशूक़ जहॉं में
मगर खुम ए जाम ए उल्फत तेरे इतबार के सिवा
रंग ए जादुई या मंजिल की सरगश्त है तू
रब से कोई दूरी नहीं, यार बेगार के सिवा
मौत भी फकत नजाकत नहीं, गर तू संग है
वजूद एजाज ए लब है, सार ही सार के सिवा
वस्क मूसा अगर फ़रिश्ता हूँ मैं, तेरी गुफ्तगू में
और न मांगा कभी कुछ, ख्याल यल्गार के सिवा
इश्क़ जैसे दो-रुख़ी सिका है ए दोस्त अग्यार
रहबर कभी गिराता, इस या उस पार के सिवा
दास्तॉं ए आवाज़ में है सुकून की गूंज
मांझा हूँ मैं भी, उस इज़हार के सिवा
बहरहाल नज़र में है कुछ ऐसा करिश्मा
हरगिज जख्म क्या उस दीदार के सिवा
सहर जूगूनओं नहीं है तो भी पास है मुझसे
ताब ए शबा यादें हैं अब, गुनाहगार के सिवा“
रब्त ए खास फलक धड़कनों की सदा है
ख़ामोश हैं लब, इंतिखाब पुकार के सिवा
मकाम ए जर्फ़ खुशियों का तराना बना समा
और कभी बना दर्द, चाहू किस उजार के सिवा
सिखाई निगाह नासमझ है हक का’फिर सादिक
तसनीम ए कौसर देखा मुकम्मल गवार के सिवा“
इश्क़ में सजदा किया देख फरियादा हर लम्हा
करामात हैरत जदा फिर वही इसरार के सिवा“
बख्सा खुसूसन गुलाम, लिखा होना मेरी जुस्तजू
हक मेरा हर सुकू दिन, गिला तार तार के सिवा
हषर बख्सिस मिजाई, ऐ दिलबर एतबार के सिवा
हसरत गर और नहीं, सब जाने इंतजार के सिवा
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जुगल किशोर शर्मा, बीकानेर
मननं कुरु, चिन्तनं कुरु, कर्मभावं धारय the importance of reflection, contemplation, and maintaining the spirit of action (karma). - लोकः समस्ताः सुखिनो भवन्तु में समाहित सहज सनातन और समग्र समाज में आदरजोग सहित सप्रेम स्वरचित - आदर सहित परिचय मैं जुगल किशोर शर्मा, बीकानेर में रहता हूॅं लेखन का शौक है मुझे स्वास्थ्य,सामाजिक समरसता एंव सनातन उद्घट सात्विकता से वैचारिकी प्रकट से लगाव है, नियमित रूप से लिंक्डिंन,युटूयूब,मातृभारती, अमर उजाला में मेरे अल्फाज सहित विभिन्न डिजीटल मीडिया में जुगल किशोर शर्मा के नाम से लेखन कार्य प्रकाशित होकर निशुल्क उपलब्ध है समय निकाल कर पढें ।
Jugal Kishore Sharma from Bikaner, delves into the complexities of love, patience, longing, and existential queries. It’s a lyrical journey through the spectrum of human emotions, reflecting the struggle and beauty inherent in unrequited love. Each couplet serves as a mirror, portraying love's power to inspire, transform, and torment simultaneously. The poem speaks to the soul’s search for union, the depth of silent sufferings, and the radiant hope held in memories, emphasizing that true love and devotion transcend worldly desires and recognition. Sharma's words create an ethereal landscape where feelings become as significant as physical reality, reflecting themes of patience, sacrifice, and mysticism in love.
Through the carefully chosen metaphors and philosophical expressions, this piece beautifully captures how love’s essence intertwines with the complexities of human existence. The verses convey the poet's contemplative perspective on life, where longing for the beloved becomes a path to deeper self-awareness and inner peace.