A public appeal to the four Shankaracharyas: Prana Pratishta

A public appeal to the four Shankaracharyas: Prana Pratishta

 A public appeal to the four Shankaracharyas: Go to Ayodhya for the consecration of the Shri Ram Temple.


Prana means aatma and vitality, while Prastistha means sanctify and establish. Before Pran Pratishta, the idol is considered as an inanimate energy called Shakti. During Pran Pratishta, Vedic mantras and installation methods sanctify unconscious energy into idols, turning them into conscious energy, animated idols of faith. God is formless and omnipresent.

 

Five gross elements, fabricated through the condensation of universal consciousness, entrap fractions of universal consciousness into the prana of living beings. Similarly, the foremost mantra and Vedic formal karma help entrap the aatmaa into an idol, installed in the temple. The temple represents the whole body and is worshipped as an animated god representing the inanimate, revered as the embodiment of divine power – that is the function of Prana Pratishta.

 

The news that the four Shankaracharyas of India will boycott the Ram Temple to be established in Ayodhya on January 22 due to internal political motives and external reasons not only devalues the prestige of Lord Rama but also humiliates the wife of Rama, the beloved daughter of Nepal.

 

While bowing down at the feet of our respected four Shankaracharyas, I appeal to all to follow and accept Sanatan Dharma.

 

Respected Four Shankaracharyas, you are our Gurus who have entrusted us with establishing our connection with Lord Rama. While fulfilling that huge responsibility, you have no right to insult our Lord Ram and our daughter Sita. As a Ved Bhumi Nepal-born Vedic scholar, I want to remind you that January 22 is not contrary to any Vedic tradition nor based on vastu and Jyotish niyam. According to the essence of Vedas, Prana Pratishta on January 22nd is not irrational; instead, it perfectly complies with the broad Vedic constitutions and beliefs.

 

Regarding this, you argue that the temple is the whole body and only has prana pratishta if it is complete. Regardless of your claim, even you know that Prana Pratishta is not an act done after the body is fully prepared.

 

Look, while we are in our mother's womb for 10 months, at the moments our body is being formed, nature fills it with life. According to science, the sperm meets the ovum and gets a welcoming seat in the mother's ovary, and then the existence of life begins there. A tiny, fertilized cell takes a physical form like a human baby in the 9th week of conceiving. From that point, the personality traits of humans begin to appear. These things do not contradict Garbha Upanishad's assumption. Vedic Garbha Upanishad, in the meaning of Prana Pratishtha eligibility of any prana, states:

 

सप्तमे मासे जीवेन संयुक्तो भवति ।

अष्टमे मासे सर्वसम्पूर्णो भवति ।

 

In the seventh month, the fetus develops the essential awareness it needs as an organism. By the eighth month, the fetus becomes fully human in every way.

 

After 9 weeks, human conciousness begins in the mother's womb. It is acknowledged that celebrations can take place from nine weeks until the baby is eight months old. Vedic literature confirms that for appropriateness, the Prana Pratistha is supposed to be done from the point a fertilized egg transforms into a concious human-shaped structure to the point it completes its entire structure. This ensures that even after the suitable muhurta (proper timing as per ritual) of Prana Pratishta, body development activities continue until death. The body's fine-tuning stays throughout life.

 

The Vedic reality and Vedic spirituality beliefs contradict the claim made by the four Shankaracharyas' recent views that assert that the Vedic Prana Pratishta should only happen after the entire temple construction is complete. As per Vedic philosophy, bodily fine-tuning works continue throughout the life of a body; full temple structural completion stages will never be attained in a spiritual sense. Therefore, the entire temple construction process is never possible, and performing Prana Pratistha after the entire construction, as claimed by the four Shankaracharyas, has no merits.

 

Prana Pratishta is the act of manifesting the unmanifest form of God. Anytime after the fertilized cell acquires consciousness and takes its shape representing the Jiva form it is turning into, it is considered to be qualified for worship in its expressed form, embodying the life of the unmanifest that turns it into the manifest. Prana Pratistha is the Vedic ritual to acknowledge these facts. Thus, Sri Rama's temple in Ayodhya is already in the Prana Pratishta ritual stage, as anticipated by Vedic philosophies.

 

The respected four Shankaracharyas are guardians and representatives of Sanatan believers in implementing the laws of God, known as the law of nature. This doesn't mean the four Shankaracharyas themselves can create additional rules and conditions that contradict God's laws. According to God's laws, a temple need not be completed to receive the holy Prana Pratishta. Instead, it is expected to undergo Prana Pratishta rituals immediately after the Garbhashaya construction is done, and the idol is conceived based on authentic Vedic rituals and traditions.

 

In Ayodhya, by this date, the Garbhashaya is ready, reaching the optimal time for the formal ritual of Prana Pratishta. Therefore, on January 22, Maryada Purushottam Ram and Jagat Janani Janaki deserve their ritual honor formally. No Sanatana believer should make the mistake of insulting Sita Mata and Lord Ram. All four Shankaracharyas are also expected to attend Ayodhya for the consecration of the Shri Ram Temple, fulfilling their duty of care to the Sanatan believers they represent.

 

Meanwhile, I want to express my sincere gratitude to the honorable Narendra Modi Ji for arranging the best date, time, and method to enshrine the life of Lord Ram's Ayodhya temple.

 

Jai Shri Ram. Sita Rama.

 

हिन्दी भाषा


चारों शंकराचार्यों से एक सार्वजनिक अपील

श्री राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा में अयोध्या जाएं।

 

प्राण का अर्थ है आत्मा या जीवन शक्ति। प्रतिष्ठा का अर्थ है पवित्र करना और स्थापित करना। प्राण प्रतिष्ठा से पहले जो मूर्ति निर्जीव मूर्ति शक्ति के रूप में होती थी, प्राण प्रतिष्ठा के दौरान उसे मंत्रों और वैदिक विधि से पवित्र करके जीवित मूर्ति या आस्था मूर्ति के रूप में स्थापित किया जाता है। ईश्वर निराकार है।  और सर्वव्यापी हैं। हालाँकि, जिस प्रकार निराकार ईश्वर ने चेतना के माध्यम से पाँच तत्वों निर्माण करके शरीर बनाया और उसमें प्राकृतिक चेतना का एक अंश रखकर जीवित प्राणी का शरीर बनाया, उसी प्रकार मंदिर का मुख्य पत्थर आत्मा के रूप में लिया जाता है और पूरे शरीर के रूप में मंदिर में स्थापित किया गया और भगवान के रूप में पूजा की गई। इसे दैवीय शक्ति के अवतार के रूप में पूजा जाता है। यही प्राण प्रतिष्ठाका कार्य है।

 

यह खबर कि भारत के चार शंकराचार्य आंतरिक राजनीतिक उद्देश्यों और बाहरी कारणों से 22 जनवरी को अयोध्या में स्थापित होने वाले राम मंदिर का बहिष्कार करेंगे, यह न केवल भगवान राम की प्रतिष्ठाका अवमूल्यन कर रहा है, बल्कि भगवान राम पत्नी नेपालि वेटी जानकी के भी प्रतिष्ठाका अवमूल्यन है।

 

मैं धर्म के नाम पर हमारे आदरणीय चार शंकराचार्यों के चरणों में झुककर कहता हूं, आदरणीय चार शंकराचार्यो आप हमारे वो गुरु हैं जिन्होंको हमें हमारे भगवान राम के साथ हमारा संबंध स्थापित करने की जिम्मेदारी सौंपी है। उस बड़ी ज़िम्मेदारी को निभाते हुए आपको हमारे भगवान राम और हमारी बेटी सीताका अपमान करने का कोई अधिकार नहीं है। वेद भूमि नेपाल से मैं आदरणीय चारों शंकराचार्यों से कहना चाहूंगा कि 22 जनवरी को प्राण प्रतिष्ठा का कोई भी कार्य, न तिथि,  न किसी भी वैदिक परंपरा और मान्यता के विपरीत है। वेदों के सार के अनुसार 22 जनवरी को प्राण प्रतिष्ठा न तो अनुचित है, न ही अवैदिक है।

 

चार शंकराचार्यों ने आपने तर्क दिया है कि मंदिर संपूर्ण शरीर है और जब तक यह पूर्ण नहीं हो जाता तब तक इसमें प्राण प्रतिष्ठा नहीं होती है। यह आप भी जानते हैं कि प्राण प्रतिष्ठा कोई ऐसा कार्य नहीं है जो शरीर के पूर्ण रूप से तैयार होने के बाद किया जाता है। जब हम 10 महीने तक अपनी माँ के गर्भ में रहते हैं, तब हमारे शरीर का निर्माण होता है। प्रकृति उसमें जीवन भरदेती है। विज्ञान के अनुसार, शुक्राणु अंडकोष से मिलकर मां के गर्भाशय में स्थान प्राप्त कर लेता है। फिर वहीं से जीव का अस्तित्व शुरू होता है। ऐसा भ्रूण गर्भावस्था के दौरान अपने विकास के 9 वें सप्ताह के दौरान एक परिपक्व मानव रूप के समान शारीरिक रूप धारण कर लेता है। उस समय से बच्चो के व्यक्तित्व लक्षण प्रकट होने लगते हैं। ये बातें पर गर्भ उपनिषद भी  खंडन करती प्रतीत नहीं होतीं।

 

प्राण प्रतिष्ठा का असल समय के अवधारणा दलानेको हेतु हमारा गर्भ उपनिषद कहता है:

 

सप्तमे मासे जीवेन संयुक्तो भवति ।

अष्टमे मासे सर्वसम्पूर्णो भवति ।


एक जीव के रूप में भ्रूण के लिए आवश्यक प्रकृति की चेतना सातवें महीने में प्राप्त हो जाती है। आठवें महीने में भ्रूण हर दृष्टि से पूर्ण मानव बन जाता है।

 

कुल मिलाकर इसका मतलब यह है कि 9 सप्ताहका समय हमारे शरीर में भ्रूण आपना प्राण पर निर्भर करता है। आठवें महीने में हर दृष्टि से पूर्ण मानव बन जाता है। चाहे गर्भाशय ने मनुष्य का आकार लिने का समय हो वह पूर्ण मनुष्य बन चुका समय हो, उसके बाद भी हमारे शरीर की अन्य निर्माण क्रियाएं मां के गर्भ में ही होती रहती हैं। यह स्पष्ट रूप से कहता है कि प्राण प्रतिष्ठा कोई ऐसी चीज़ नहीं है जिसे पूरे मंदिर को तैयार करके किया जाना चाहिए जैसा कि आप चार शंकराचार्यों दावा करते हैं।

 

वैदिक अवधारणा के हेतु अव्यक्त ईश्वर के व्यक्त रूप में स्थापित करने की क्रिया ही प्राण प्रतिष्ठा है। किसी भी समय जब जीव का भ्रूण अपना वास्तविक रूप धारण कर लेता है, तब वह अव्यक्त तत्त्व में प्राण प्रतिष्ठित करके व्यक्त रूप मे पूजा करने के लियो योग्य बन जाता है। शास्त्रीय दृष्टि से अयोध्या में निर्मित श्रीराम मंदिर के जनवरी २२ प्राण प्रतिष्ठा के लिए पूर्ण योग्य समय है।

 

आदरणीय चार शंकराचार्यों, आप प्राकृतिक कानून और भगवान के कानून के संरक्षक हैं। निर्माण कर्ने वाला नही। प्रकृति या ईश्वर के नियमों के अनुरूप  मंदिरका प्राण प्रतिष्ठा होने के लिए मंदिरका पूर्ण होना आवश्यक नहीं है। बस गर्भाशय तैयार होना चाहिए। इसलिए 22 जनवरी को मर्यादा पुरूषोत्तम राम और जगत जननी जानकी की अपमान करने की भुल करके अपने उत्तरदायित्व से विमुख न हों। साथ ही, मैं भगवान राम की अयोध्या मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा कराने के लिए सर्वोत्तम तिथि, समय और विधि की व्यवस्था करने के लिए सम्माननिय  नरेंद्र मोदी जी के प्रति हार्दिक आभार व्यक्त करना चाहता हूं।

 

जय श्री राम। सीता राम।

 

नेपाली भाषा 


चारै शङ्कराचार्यहरूमा सार्वजनिक अपिल

श्रीराम मन्दिरको प्राण प्रतिष्ठामा अयोध्या जानुहोस्।

 

चारै शङ्कराचार्यहरूमा सार्वजनिक अपिल

श्रीराम मन्दिरको प्राण प्रतिष्ठामा अयोध्या जानुहोस्।

प्राणको अर्थ हुन्छ आत्मा वा सजिबता। प्रतिष्ठाको अर्थ हो पवित्र बनाएर स्थापित गर्नु। प्राण प्रतिष्ठा भन्दा पहिले निर्जीव मूर्ति रुपी शक्तिको रूपमा रहेको मूर्तिलाई प्राण प्रतिष्ठाको क्रममा मन्त्र तथा वैदिक विधि वाट पवित्र गरी सजीव मूर्ति वा आस्थाको प्रतिमूर्तिको रूपमा स्थापना गर्ने कार्य हो। ईश्वर निराकार हुनुहुन्छ। सर्वव्यापी हुनुहुन्छ। तर पनि जसरी निराकार ईश्वरले चेतना वाट नै पाँच तत्त्व रुपी शरीर निर्माण गरी त्यसमा प्राकृतिक चेतनाको एक अंश राखेर सजीव प्राणीको शरीर निर्माण गर्नु भएको छ त्यसरी नै मन्दिरको मुख्य शिलालाई प्राणको रूपमा लिएर समग्र शरीरको रूपमा लिइने मन्दिरमा स्थापना गरी त्यसलाई देवको रूपमा पूजा गर्न थालिन्छ। देव शक्तिको प्रतिमूर्तिको रूपमा मानेर त्यसलाई पूजा आराधना गरिन्छ। त्यो नै प्राण प्रतिष्ठाको कार्य हो।

यही जनवरी २२ मा अयोध्यामा स्थापना हुन लागेको राम मन्दिरको प्राण प्रतिष्ठाको कार्य लाई भित्री रूपमा राजनीतिक नियत र बाहिरी रूपमा अन्य कारण देखाएर भारतका चार शङ्कराचार्यहरूले बहिस्कार गर्ने भन्ने खबर स्वयं भगवान् रामको प्रतिष्ठाको अवमूल्यन त हो नै हामी सीताको माइती नेपालीको समेत मानमर्दन गर्ने काम हो। धर्मको नाममा हाम्रा आदरणीय चार शङ्कराचार्यहरू को चरणमा प्रणाम गर्दै म भन्दछु आदरणीय चार शङ्कराचार्य ज्युहरू तपाइहरू हाम्रो गुरु हुनुहुन्छ जसले हामीलाई हाम्रो परमेश्वर राम संग हाम्रो सम्पर्क स्थापना गर्ने जिम्मेवारी लिनु भएको छ। त्यो विशाल जिम्मेवारी पुरा गर्ने क्रममा तपाइहरूँ संग स्वयं हाम्रो भगवान् रामको र हाम्री चेली सीताको अपमान गर्ने अधिकार छैन। वेद भूमि नेपाल वाट आदरणीय चार शङ्कराचार्य ज्यु हरूलाई म भन्न चाहन्छु जनवरी २२ मा हुने प्राण प्रतिष्ठाको कुनै पनि कार्य, न तिथि मिति, कुनै पनि वैदिक सनातनको रित विपरीत छैन। वेदको सार ज्ञान अनुरूप जनवरी २२ मा हुने प्राण प्रतिष्ठा कुनै हिसाब वाट समेत न त अबैदिक छ न अबैज्ञानिक नै।

प्राण प्रतिष्ठा गर्ने कार्यक्रम अन्तिम चरणमा पुगे पछि तपाईँहरूले मन्दिर भनेको सम्पूर्ण शरीर हो र त्यसको पुरा नभई प्राण प्रतिष्ठा हुँदैन भन्ने तर्क गर्नु भएको रहेछ। तपाइहरू लाई समेत थाहा भएको प्रमाणित कुरा के हो भने प्राण प्रतिष्ठा शरीर सम्पूर्ण रूपमा तैयार भएपछि गर्ने कार्य होइन।

हामी हाम्रो आमाको कोखमा १० महिना बस्ने क्रममा हाम्रो शरीर बन्दै गर्दा प्रकृतिले त्यसमा प्राण भरिदिने गर्दछिन्। विज्ञान अनुसार वीर्य अण्डा संग मिल्दछ र त्यसलाई आमाको गर्भाशयमा आसन मिल्दछ तब त्यहाँ जीवको अस्तित्व सुरु हुन्छ। त्यस्तो भ्रूण आफू गर्भावस्थामा विकास हुने क्रमको ९ हप्तामा परिपक्व मानव रूपसँग मिल्दोजुल्दो शारीरिक रूप लिने हुन्छ। त्यस बिन्दु वाट व्यक्तित्वको विशेषता देखिन थाल्दछ। यी कुराहरू गर्भ उपनिषदको विमति देखिँदैन।

प्राण प्रतिष्ठाको हिसाबको अर्थमा हाम्रो गर्भ उपनिषद भन्दछ:


सप्तमे मासे जीवेन संयुक्तो भवति ।

अष्टमे मासे सर्वसम्पूर्णो भवति ।


भ्रूणलाई जीवकोरूपमा जरुरी हुने स्वभाव चेतना सातौँ महिनामा प्राप्त हुन्छ। आठौँ महिनामा भ्रूण सबै अर्थमा पूर्ण मानव बन्दछ।


यसको समग्र अर्थ के हो भने ९ हप्ताको समय वाट हाम्रो शरीरमा उक्त भ्रूणको प्राण प्रतिष्ठा भएको हुन्छ। यसलाई आठौँ महिना सम्ममा प्राण प्रतिष्ठा गर्दा पनि अस्वीकार हुने कुरा होइन।

गर्भाशयले मानव रूपको आकृति दिई सकेको समय होस् वा त्यसको अर्थमा पूर्ण मानव बनिसकेको अवस्था होस त्यस पछि पनि आमाको पेटमा रहेको हाम्रो शरीरको अन्य निर्माणका कार्यहरू भइरहेका हुन्छन्।

यसले प्रस्ट भन्दछ प्राण प्रतिष्ठा तपाइहरूले दाबी गरे जस्तो मन्दिर सम्पूर्ण रूपमा तैयार भएर गर्नुपर्ने कुरा होइन।

अव्यक्त ईश्वरको आकृतिलाई लाई व्यक्त आकृतिमा स्थापित गर्ने कार्य लाई प्राण प्रतिष्ठा भनिन्छ। जुन समयमा जीवको भ्रूणले त्यसको वास्तविक रूप लिन्छ त्यो समय देखि पछाडि जुन सुकै समयमा अव्यक्त तत्त्वको प्राण प्रतिष्ठा गरी व्यक्त स्वरूपको पूजा अर्चना गर्न योग्य बन्दछ।

यी यथार्थहरु ले के भन्दछ भने हालको श्रीरामको अयोध्याको मन्दिरको निर्माण अनुरूप आयोजित प्राण प्रतिष्ठाको शास्त्रीय रूपमा उपयुक्त देखिन्छ।

आदरणीय चार शङ्कराचार्य ज्युहरू, तपाईँहरू प्राकृतिक नियम र ईश्वरको विधि विधानको पालक हो। निर्माण कर्ता होइन।

प्रकृतिको वा ईश्वरको नियम अनुरूप प्राण प्रतिष्ठाको लागि मन्दिर पुरा हुनु जरुरी होइन। गर्भाशय तैयार हुनु पर्ने हो। त्यो पूर्वाधार त्यहाँ अवस्थित छ।

त्यसैले जनवरी २२ को प्राण प्रतिष्ठा बहिस्कार गरी मर्यादा पुरुषोत्तम राम र जगत जननी जानकी, हाम्री सिता माताको अपमान गर्ने गल्ती गरेर आफ्नो दायित्व वाट नचुक्न सिता माताको माइती वाट यहाँ हरूमा सादर दण्डवत् प्रणाम सहित अनुरोध गरे।

साथै उत्तम मिति, समय र विधि वाट भगवान् रामको अयोध्या मन्दिरको प्राण प्रतिष्ठा गर्ने व्यवस्थामा सहजीकरण गर्ने ऋषि मनले सम्पूर्ण तागत लगाउनु भएकोमा आदरणीय सम्माननीय नरेन्द्र मोदी ज्युमा हार्दिक आभार व्यक्त गर्न चाहन्छु।

जय श्री राम। सीता राम।

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